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किस भाव से क्या विचार करें ?

किस भाव से क्या विचार करें ?

प्रथम भाव– इसे लग्न भी कहते हैं, इससे शरीर, रंग-रूप, आकृति, प्रकृति, स्वभाव, आत्मबल, दिमाग, स्वास्थ्य, शरीर की दुर्बलता, पुष्टता, कद, सिर, यश, प्रतिष्ठा, दादी, नाना इत्यादि का विचार किया जाता है।

द्वितीय भावइसे धन भाव कहते हैं। इससे धन-धान्य, सोना-चांदी, रत्न, कोष, सम्पत्ति, कुटुम्ब, भोजन, मुख, चेहरा, दाहिना नेत्र, वाणी, भाषण कला, काव्य तथा बडे़ मामा व मौसी का विचार किया जाता है।

तृतीय भावयह सहज भाव है। इससे बल-पराक्रम, साहस, धैर्य, शौर्य, हाथ, बाजू, छाती, दाहिना कान, सांस की नली, श्रम, पड़ोसी, छोटे भाई-बहन आदि का विचार किया जाता है।

चतुर्थ भावइसे सुख स्थान या सुहृद भी कहते हैं। इस स्थान से सुख-दुख, ऐश्वर्य, माता, घर, मकान, जमीन, खेतीबाड़ी, बाग-बगीचा, तालाब, नदी, पुल, वस्त्र, आभूषण, वाहन-मोटर कार, मित्र-बन्धु, जनता, छाती, हृदय, ससुर इत्यादि का विचार किया जाता है।

पंचम भावइसे सुत भाव कहते हैं। इससे संतान, विद्या, बुद्धि, भविष्य ज्ञान, स्मृति, शास्त्र ज्ञान, ईष्ट देव, यंत्र-मंत्र-तंत्र, लॉटरी, प्रेमिका, पेट, प्रथम गर्भ, बड़ी बहन के पति इत्यादि का विचार किया जाता है।

षष्ठ भावइसे रिपु भाव कहते हैं। शत्रु, झगड़ा, मुकदमा, युद्ध, चोट, दुष्ट कर्म, सौतेली मां, कर्ज, चिन्ता-शंका, रोग-पीड़ा, हानि, अपयश, चोर भय, बन्धन भय, अपमान, रुकावटें, कमर, अंतडि़यां, नाभि, मां का छोटा भाई आदि का विचार इसी भाव से किया जाता है।

सप्तम भावइसे जाया या कलत्र स्थान कहते हैं। पति, पत्नी, विवाह, स्त्री सुख, काम-वासना, वीर्य, मूत्रेन्द्रिय, व्यापार (साझेदारी) में विवाद, भतीजा-भतीजी गर्भ स्थिति (दूसरी बार की) इत्यादि विषय इस भाव से विचारणीय हैं।

अष्टम भावइसे आयु या मृत्यु स्थान भी कहते हैं। इससे आयु, स्त्रियों का मांगल्य-सौभाग्य, स्त्री की ओर से धन प्राप्ति, अकल्पित लाभ, मृत व्यक्ति का धन, संकट, व्याधि, ऊंचाई से गिरना, विष, कर्ज, आत्महत्या, क्लेश, विघ्न, नदी तैरना, गुदा रोग, गुप्त रोग, शत्रु भय, वस्तुनाश, मृत्यु का कारण इत्यादि का विचार किया जाता है।

नवम भावइसे धर्म स्थान तथा भाग्य स्थान भी कहते हैं। धर्म, श्रद्धा, तीर्थ यात्र, भाग्योदय, दूर की यात्र, समुद्र यात्र, गुरु, आचार्य, दीक्षा, योग, समाधि, निर्मल स्वभाव, नम्रता, जांघ, साला-साली, भावज, बेटे-बेटी की संतान, इत्यादि का विचार किया जाता है।

दशम भावइसे कर्म स्थान या राज्य स्थान भी कहते हैं। इससे पितृ सुख, उद्योग-धंधा, व्यापार, राज्याधिकार, उच्च पद प्राप्ति, कर्म, यज्ञ, नौकरी, पदोन्नति, पदावनति, आजीविका साधन, उच्चाभिलाषा, स्थानांतरण, घुटने, सास (पत्नी की मां) इत्यादि का विचार किया जाता है। 

एकादश भावइसे आय स्थान या लाभ स्थान भी कहते हैं। अनेक प्रकार के लाभ, आशा, इच्छा, द्रव्य लाभ, ऐश्वर्य, मित्र सुख, विद्या लाभ, ठेकेदारी, बायां कान, पिण्डलियां, बड़ा भाई, दामाद, पुत्र वधू आदि विषय इसी भाव से संबंधित हैं।

द्वादश भावइसे व्यय स्थान कहते हैं। इससे मोक्ष, आध्यात्मिक विद्या, गुप्त विद्या, खर्च का विचार, हानि, दान, व्यय, आत्महत्या, पाखण्ड, राजकीय संकट, दण्ड, कैद, दुख दरिद्रता, पाप, शयन सुख, नींद, वीर्य विसर्जन, खुफिया पुलिस, कर्ज, सिर की पीड़ा, बायां नेत्र, पांव का पंजा, चाचा, बुआ इत्यादि का विचार किया जाता है।

बारह भावों के कारक ग्रह 

  • प्रथम भाव-सूर्य 
  • द्वितीय भाव-गुरु
  • तृतीय भाव-मंगल
  • चतुर्थ भाव-चन्द्र एवं बुध
  • पंचम भाव-गुरु
  • षष्ठ भाव-शनि एवं मंगल
  • सप्तम भाव-शुक्र
  • अष्टम भाव-शनि
  • नवम भाव-सूर्य एवं गुरु
  • दशम भाव-सूर्य, बुध, गुरु, शनि
  • एकादश भाव-गुरु
  • द्वादश भाव-शनि
नोटः-ये स्थिर कारक हैं। लग्न कोई भी हो, कुण्डली कोई भी हो, भावों के स्वामी तो प्रत्येक कुण्डली में, भावों में स्थित रिाशयों के अनुसार भिन्न-भिन्न होंगे, किन्तु भावों के कारक प्रत्येक कुण्डली मेें यही होते हैं।


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