सर्व मनोकामनाओ की पूर्ति हेतु रविवार का वर्त श्रेस्ठ है। रविवार सूर्य का दिन माना जाता है और इस दिन सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। सूर्य से शुभफल प्राप्त करने के लिए हर रविवार गुड़, चावल और तांबे का सिक्का नदी में प्रवाहित करें।
विधि
प्रातः काल सनानादी से निवृत हो स्वच्छ वस्त्र धारण करे, शांतचित होकर परमात्मा का स्मरण करे, भोजन इक समय से ज्यादा नहीं करना चहिये, भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते कर लेना चहिये, यदि निराहार रहने पर सूर्ये छिप जये तो दूसरे दिन सूर्ये उदय हो जाने पर अर्ध्य देने के बाद भोजन करना चहिये, व्रत के अंत में व्रत कथा सुननी चाहिये, व्रत के दोरान नमकीन व तेलयुक्त भोजन कदापि ग्रहण न करें, इस व्रत के करने से मान—सम्मान बढता है तथा शत्रुओं का सये होता है, आँखों को पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ाए दूर होती हैं।
आरती
कहूँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे।।
सात समुन्द्र जाके चरणनि बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम।।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मंदिर दीप धारे हो राम।।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धारे हो राम।।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेधा धारे हो राम।।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झंकार करे हो राम।।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहमा वेद पड़े हो राम।।
शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको धायान धारें हो राम।।
हिम मंदार जाको पवन झंकोरे, कहा भयो शिर चवर ढुरे हो राम।।
लख चोरासी बन्दे छुडाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो राम।।