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जन्म कुण्डली क्या है?

प्रथम भाव को ‘लग्न’

जन्म कुण्डली
आकाश का नक्शा है। जिस समय किसी बालक का जन्म होता है, उस समय आकाश पर जो ग्रह जहां-जहां, जिस स्थिति में होते हैं, जब उन्हें हम एक कागज पर लिखकर नक्शा तैयार करें, तो उसे ही जन्म कुण्डली कहा जाता है। जन्म कुण्डली के बारह खाने होते हैं, जैसा कि सामने आकृति में दिखाया गया है कि जहां ‘प्रथम’ लिखा है, वह कुण्डली का प्रथम खाना है। खाना कहिए, भाव कहिए, घर कहिए या स्थान कहिए, एक ही बात है। प्रथम भाव को ‘लग्न’ कहते हैं। यथा- जहां प्रथम लिखा है वह प्रथम भाव, जहां द्वितीय लिखा है, वह द्वितीय भाव, जहां तृतीय लिखा है, वह तृतीय भाव, जहां पंचम लिखा है, वह पंचम भाव, जहां नवम लिखा है, वह नवम भाव और जहां द्वादश लिखा है, वह द्वादश भाव है। प्रत्येक कुण्डली में इसी क्रमानुसार बारह भाव होते हैं। भावों की कुल संख्या बारह होती है और राशियां भी बारह ही हैं। कुण्डली में भाव संख्या नहीं लिखी जाती, केवल याद की जाती है। जब कुण्डली बनाई जाती है, तो उसका आरंभ प्रथम भाव यानी ‘लग्न’ से ही होता है और भावों का क्रम प्रत्येक कुण्डली में ऊपर बताए अनुसार ही होता है। परन्तु, कुण्डली में अंक राशि के अनुसार ही भरे जाते हैं। मान लीजिए कि किसी जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ है, तो मेष प्रथम राशि होने से प्रथम भाव में एक का अंक लिखा जाएगा और उसके आगे क्रमानुसार दूसरे भाव में दो, तीसरे भाव में तीन, चौथे भाव में चार, पांचवें भाव में पांच, छठवें भाव में छः, सातवें भाव में सात, आठवें भाव में आठ, नौवें भाव में नौ, दसवें भाव में दस, ग्यारहवें भाव में ग्यारह और बारहवें भाव में बारह लिखा जाएगा। इस प्रकार कुण्डली पूर्ण रूप से ऐसी बन जाएगी, जैसी यहां दिखाई गई है। एक उदाहरण और लेते हैं। यदि किसी जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ है, तो कर्क चौथी राशि होने से प्रथम भाव में चार का अंक लिखा जाएगा और क्रमानुसार दूसरे भाव मे पांच, चौथे भाव में सात, चौथे भाव में सात, छठे भाव में नौ, आठवें भाव में ग्यारह, दशम भाव में एक का अंक और बारहवें भाव में तीन का अंक लिखा जाएगा। तब पूर्ण रूप से कुण्डली ऐसी बन जाएगी, जैसे यहां दिखाई गई है। यदि किसी का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ हो, तो वृश्चिक आठवीं राशि होने से प्रथम भाव में आठ का अंक लिखा जाएगा, फिर क्रमानुसार एक-एक बढ़ते हुए पंचम भाव मे बारह का और षष्ठ भाव में एक का अंक, अष्टम भाव में तीन क अंक और अन्त में बारहवें भाव में सात का अंक लिखने से कुण्डली ऐसी ही बन जाएगी जैसी की सामने दिखाई गई है। इस तरह से कोई भी कुण्डली बनानी हो तो जन्म के समय जो लग्न हो, उस लग्न की राशि का अंक प्रथम भाव में लिखकर एक-एक अंक क्रमशः बढ़ाते हुए सभी बारह भावों की पूर्ति की जाती है।

जन्म कुण्डली के प्रकार

       कुण्डली के प्रकार                                      
1- जन्म कुण्डली (लग्न कुण्डली)
2- चन्द्र कुण्डली
3- होरा कुण्डली
4- द्रेष्काण कुण्डली 
5- सप्तांश (सप्तमांश) 
6- नवांश (नवमांश)
7- द्वादशांश
8- त्रिशांश

   जब ज्योतिष शास्त्र का निर्माण हुआ, तब उक्त विभिन्न प्रकार से विचार करने की परिपाटी प्रचलित थी, परन्तु आजकल यह परिपाटी प्रायः समाप्त हो रही है, फिर भी कुछ विद्वान ज्योतिषी अभी भी इनका विचार करते हैं। जब कि मेहनत से कतराने वाले बहुत से ज्योतिषी इसे अनावश्यक कहकर टाल देते हैं।
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